सरहद की माटी
सरहद की माटी
घर का वो कोना आज सुनसान था
उसे भाई की कलाई का इंतजार था।
छांव बनूंगा तेरी कहता नहीं थकता था
किस्से धूप के भरपूर सुनाया करता था।
आज चुप्पी-सी है।
सरहद की माटी की आंगन में खुशबू सी है
लेकिन वो कोना विश्वास लिए बैठा है ।
आज भी पूजा की थाली में रोली कुमकुम सजाए एकांत में ऐंठा है।
आज राखी बंधेगी ,तिरंगे की आन में कलाई जरूर सजेगी
अब कोई कोना कभी अकेला नहीं होगा
कलाई का इंतजार कभी फिजूल नहीं होगा
माटी के कण-कण में खुशबू महकेगी ।
उस कोने में अब कभी खामोशी नहीं सजेगी।