सपनों की महफ़िल
सपनों की महफ़िल
सपने आंखो में जो बसाएँ थे,
उन सपनों ने ही हमें बहलाए थे।।
दिल की नादानी ही थीं,
ग़म की मेहरबानी ही थी।।
महफ़िल सपनों के सजाए थे,
अंजान से दिल लगाए थे।।
कुछ वक़्त की नज़ाकत थी,
कुछ उम्र की गुज़ारिश थी।।
मगर सपनों ने दिल में दम तौड़ा,
सपनों ने सपने देखने काबिल ना छोड़ा।।
बहुत समझदार हो गए अब हम,
सपनों को दफ़न करना सीख गए है हम।।
दिल में चिराग़ अब भी जलता है,
जाने क्यों किसी कोने में कोई सपना पलता है।।
अब बैर अपने दिल से है,
रंजीशें इन सपनों की महफ़िल से है।।

