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Nitu Arya

Abstract

4  

Nitu Arya

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सपनों की दुनिया की हकीकत

सपनों की दुनिया की हकीकत

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जीवन को स्वपनिल समझ हमने भी सँजोए सहस्र स्वप्न 

चन्दन सी पावन धरा पर,

दूर तक बाँह पसारे खुले फलक तले 

पुष्पाच्छादित,सुगन्धित, टिम-टिम तारों से शोभित 

खिलखिलाता,झिलमिलाता, मुस्कराता हुआ 

एक आशियां हो हमारा 


प्रेम, सद्भावना और आदर का सर्वत्र हो बसेरा

बड़ो केआशिर्वाद और छोटो के दुलार से रोज हो सवेरा

उचित-अनुचित, सत्य-असत्य का ज्ञान हो,

दंड और पुरस्कार हेतु प्रावधान हो,


लेकिन, किन्तु, परन्तु सभी हो लिए एक साथ

स्वप्नों ने स्वपनों को स्वप्नों में ही दे दी मात 

अब तो दिवस में भी तम निर्दिष्ट होता है 

स्वप्नों का स्थान सदैव पलकों के निकृष्ट होता है 


पलकें उठीं तो खण्डित स्वप्नों के एहसास के साथ 

चन्द बूंद अश्क भी छलक आयी।

मैंने पूछा बहते अश्को से, मै तो खोई थी सुनहरे सपने में ,

क्यों री तू चली आई !


अश्क कुछ पल शान्त रही, फिर बोली;

विचलित हुई तुझे इस कदर तन्हा देख, 

सो सखी बन तेरा साथ देने चली आई। 


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