सफर
सफर
सूनी राहों पे चलते जाएंगे हम...
ना कोई ठिकाना होगा, ना ही कोई मंजिल, मुसाफिर है हम,
बस सफर की शुरुआत करके, मंजिल की फिकर ना करके, जिंदेगी यूंही जी जाएंगे हम...
राह-ए-जिंदेगी के सफर पर जाएंगे हम।।
राहों पर जब भी देखूं उस पेड़ की छाँव ,
मां के आँचल सी ठंडी हवा उस पेड़ के नीचे पाऊँ।।
वो खूबसूरत गलियों में याद आती है किसी की, उन हसीन रातों को मैं ना भुला पाऊँ।।
ना खत्म हो यह रास्ते इन्होंने सिखाया बहुत है, बस यही रह जाने का मन करे,
क्यों कि जिंदगी का सफर सुहाना बहुत है।।
वो नदी और मै समुंदर बन जाऊं, कितने अलग क्यों ना हो मिलना थो तय है।।
राह-ए-जिंदगी के सफर पर आए है हम, तुम और मै मिले और छोटी सी मुलाक़ात हो जाए,
ज्यादा कुछ नहीं बस उन राहों पे बरसात हो जाए, यूं ही जिंदगी का सफर गुजर जाए।।
मंजिल तो बहुत है, बास उन तक का सफर सुहाना गुजर जाए, यूंही ज़िंदेगी जी जाएंगे हम।।
राह-ए-जिंदेगी के सफर पे आए हैं हम।।