सफलता
सफलता
सफलता आज उसके क़दम चूम रही है,
अश्रु प्रसन्नता के संभाल नहीं पा रहे हैं नयन,
मिल रहा है उसे आज सर्वोच्च सम्मान,
देश के नागरिक का, राष्ट्रपति द्वारा।
छोड़ गये थे पिता बाल्यावस्था में ही,
पैर नहीं थे पूरे जन्म से,
की माँ ने देखभाल अकेले मज़बूती से,
कभी होने न दिया एहसास पिता की कमी का।
मिला बल अपार माँ की दृढ़ इच्छा शक्ति से,
हाथ उसके हाथ भी थे और पैर भी,
किया निश्चय डाक्टर बन जन सेवा का,
चल पड़ी अपने निश्चय को स्वरूप देने।
लगी करने अध्ययन जी जान से,
न देखा कभी मुड़ कर पीछे,
बन अपने स्कूल की जान और शान,
पहुंच गई एक दिन मेडिकल कालिज में।
चढ़ती गई सीढ़ी सफलता की,
अपनी मेहनत और लगन से,
बनी डाक्टर पा गोल्ड मेडल कॉलेज से,
कर आगे पढ़ाई बन गई कैंसर विशेषज्ञ।
बैठ पहिये वाली कुर्सी पर देखती मरीज़,
था जादू उसके हाथ में, लगी रहती भीड़,
करती उपचार दरिद्र व्यक्तियों का,
तन मन और धन से, पाती ढेरों आशीर्वाद।
रखी थी तस्वीर माँ की मेज़ पर,
आया एक वृद्ध देख तस्वीर चौक गया,
पल भर में गया समझ, भर गया मन ग्लानि से,
भर गये नयन जल से, कैसे करूंगा बात?
लगा जाने वापिस, पल भर में समझ गई वह,
परिचय उसका, झट लिया पकड़ हाथ उसका,
बोली, “माँ चली गई छोड़ सदा के लिये,
क्या देंगे छोड़ आप भी मुझे?”
किया स्वस्थ पिता को सेवा और चिकित्सा से,
लगी रही जनसेवा में जी जान से,
पाया सम्मान, मेडल, प्यार, आशीर्वाद,
अनगिनत और आज पा रही,
सर्वोच्च सम्मान,
देश के नागरिक का, राष्ट्रपति द्वारा।
