संतुष्टि
संतुष्टि
काम-क्रोध-मद-लोभ के चक्कर में
भटक रहा इंसान है
इसीलिए तो संतुष्टि पाता नही इंसान है।
धीरज धर मन में करता जो काम है
जीवन पथ पर बढ़ता वही इंसान है।
समर्पित हो लक्ष्य को करता जो प्रयास है
जीवन में संतुष्टि पाता वही इंसान है।
इच्छाओं का होता अनंत आकाश है
इक होती पूरी दूसरा फैलाता मोह पाश है।
इच्छाओं में ही होता सुख-दुःख का वास है
संतोषी जन ही पाता परमसुख धाम है।
