Praveen Gola

Romance

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Praveen Gola

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संतोष

संतोष

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आकाश में बादल घनेरे,

हम दोनो के गुलाबी चेहरे,

प्यासे अधर डालें डेरे,

मिलन की आग और घेरे।


चारों ओर छाये सपने सुनहरे,

आलिंगनबद्ध मुस्कुराते चेहरे,

कहीं दूर किसी एकांत में,

सजने लगे ख्वाबों के मेले।


बोझल तन व्याकुल मन,

कुछ पाने को मचले उस क्षण,

कदम बढ़े, भीगे कपड़े,

रिमझिम वर्षा में तन अकड़े।


एक तन्हाई

फिर पास लाई,

दूसरा आलिंगन,

थोड़ी गर्मी लाई।


धीरे - धीरे वस्त्र रखे सुखाने,

निर्वस्त्र हो अब बह गए दीवाने,

अगन लगी थी जो तन में,

उसमे गुम थे तब सब सपने।


एक संतोष दोनों को घेरे,

नई चाहत के नए चेहरे,

सात बंधन अब हो ना हो,

बिन फेरे हम तेरे।


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