संगठन-तंत्र ( 56 )
संगठन-तंत्र ( 56 )
त्याग पद-मान और सम्मान का कर,
सिर्फ और सिर्फ कार्यकर्ता बनकर,
धरातल पर अपना काम तुम करो
संगठन का कारवां यूँ ही बढ़ता रहे,
लालच और भोगों जैसे रोगों से बचते रहो तुम,
"तुम" और "मैं" का वहम न पालो
"हम सब" का पालन करो तुम,
निःस्वार्थ से संगठन का काम करो तुम,
चालाकी और चतुराई का
ताना-बाना न बुनो तुम,
जोड़ते-जोड़ते चलो सबको
निज-स्वार्थ के लिए किसी को काटो न तुम,
कदम से कदम मिलाकर चलोगे
तो निश्चत ही सफलता पाओगे,
जोड़-तोड़ के चक्कर में
धरोहरे पूर्वजों की खो दोगे,
प्रेम-स्नेह से सबको ले कर
चलोगे इस पथ पर,
कोई तूफान आड़े न आएगा
चल रहे हो जिस पथ पर,
बढ़ते रहें नेकी की राह पर
नेक काम करते-करते,
तो हमको कोई रोक नहीं सकता
इस मार्ग पर चलते-चलते !!
