संगदिल जहां
संगदिल जहां
पत्थर दिल लोग रहते हैं यहां,
या यूं कहो पत्थरों सा है जहां ।
दिल टुकड़े टुकड़े हुए जाता है,
दर्दों गम से भरा रहता हर समां।
नजरें भी कैसी बदली बदली सी,
होंठो में अब वो मुस्कान है कहां ?
सीधी बात के कई मतलब बनाते,
लोगों से गुफ्तगू करना मुहाल यहां।
हर कोई खुदपरस्ती में मशगूल है,
गैरों को खुद से कमतर समझते यहां।
खुदगर्जी तो शबाब पर है जनाब !!,
बेगरज के कोई पूछता भी नहीं यहां ।
किसी की तारीफ औ हौसला अफजाई,
रवायत होती होगी, अब वो बात कहां!
नादान शीशा ए दिल हाय ! कहां जाए,
जब पत्थर का हो गया खुदा भी यहां ।
वो भी सुनता नहीं अब फरियाद हमारी,
ये हमारी कमनसीबी ठहरी क्या करें बयां।
अब तो दिल भर गया संगदिल जहां से,
"ए अनु " कज़ा ही है हमदर्द तेरी यहां ।