संडे
संडे
बहुत दिनों बाद वो संडे आया था
आज मैंने छुट्टी ही लिया था
हर बार मैं छुट्टी मानकर चलता रहा
हर बार ऑफिस से बुलावा आया था।
ऑफिस वालोंको यह बात पंसद नहीं आयीं
मैंने तो सिर्फ छुट्टी का ख्वाब सजाया था
हम डूब गये रात और अंधेरे में
न जाने आज कितना पेग लगाया था।
मैं जहाँ जाता वहाँ संडे नहीं आता
वो तो पिछले ही साल आया था
खुद को ही छोड़ कहीं और जाना
इस मौत के समंदर ने बहुत पढ़ाया था।
पूरी उम्र इस धुँए में घुटकर
मैंने अपनी क्रिएटिविटी को ही बुझाया था
पता नहीं वो पल कहाँ से आया था
उसने आज रात को दिन से मिलाया था।