शिक्षक
शिक्षक
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बचपन में माँ बाप ने ऊँगली
पकड़कर चलना सिखाये,
और जिन्होंने हमे सही गलत का
फर्क बताया वे हमारे पूज्यगुरदेव कहलाये।
आसान नहीं था यूँ खेलकूद व
मस्ती में किताबो का बोझ उठाना,
खेल ही खेल में दे गए
जीवन का सारा आशियाना।
गुरु की चरणों की
धूल हमारे माथे की चन्दन है,
उनके शुभ आशीष
हमारे लिए अभिनानादन है।
गुरु की कृपा सभी
पर होता एक समान,
उनके प्रभाव से हो जाता
हर दुर्लभ प्रश्न भी आसान।
मन में अच्छे विचारों
का कराते निवेेेश,
हमेशा सत्य व अहिंसा
का देते संदेश।
गुरु के निर्देश के बगैर
अधूरे हैं हमारे सभी काम,
ऐसे गुरुओं को मैं करता हूँ
शत शत प्रणाम।