समुद्र सा प्यार
समुद्र सा प्यार
समुद्र सी आंखों में गहराई ले कर
वह पास ऐसे आई कि अपना बना लिया,
रहते थे मस्त कलंदर की तरह आजादी से
उसकी मिठ्ठी बातों ने गुलाम बना लिया,
उड़ते थे खुले आकाश में हम कभी
अब उसकी बाहों में हमने ठिकाना बना लिया,
अक्सर कहती थी तुम दुर मत हो जाना
आज हम को लगता है उसके दुर होने का डर, शेर को भी उसने डरपोक बना लिया,
सिर्फ आवाज तक सिमित रहने वाली ने
आज खुद को असिमित बना लिया,
करती है मोहब्बत समुद्रं की गहराई जितनी
तभी तो हमें पत्थर को भगवान बना लिया,
ना कंही अब उसके बिना कंही ठिकाना नजर आता
हमने तो दोनों और का उसके प्यार का तट बना लिया।।