समुद्र किनारे की आवाज़
समुद्र किनारे की आवाज़
क्षीरसागर का मंथन हो या
लक्ष्मी-विष्णु के मिलन की हो बात।
ना जाने कितने पुराणों की कथा।
‘मैं खुद में हूंँ समेटे’ मानो कह रहा है यह समुद्र।
कभी तो सुनो ध्यान से बैठ समुद्र के किनारे।
समुद्र किनारे की आवाज़।
समुद्र किनारे की आवाज़।
‘जितना गहरा जल है मुझमें।
उतने ही गहरे हैं मुझमें कुछ राज़।’
मानो कह रहा है यह समुद्र।
कभी तो सुनो ध्यान से बैठ समुद्र के किनारे।
समुद्र किनारे की आवाज़।
समुद्र किनारे की आवाज़।
‘कितनी मछलियांँ हंँसती हैं मुझमें और
ना जाने कितनी ही मछलियांँ रोती भी है मुझमें।
जब देखती हैं किसी अपने को,
जाते हुए मछुआरे संग फँस उसके जाल में।
कभी तो सुनो ज़रा,
उन मछलियों के करुण-रुदन की आवाज़।’
मानो कह रहा है यह समुद्र।
कभी तो सुनो ध्यान से बैठ समुद्र के किनारे।
समुद्र किनारे की आवाज़।
समुद्र किनारे की आवाज़।
‘ना जाने कितनी ही नदियांँ,
आकर मिल जाती है मुझमें।
लोगों को लगता है कि,
मुझे कहाँ कोई भी प्यास।
कैसे समझाऊंँ लोगों को मैं कि,
कितना नमक समाया है मुझमें।
मुझे भी है थोड़ी-सी चीनी की प्यास।
मुझे भी है थोड़े-से मीठे बोल की प्यास।
मुझे भी चाहिए किसी अपने का एहसास।’
मानो कह रहा है यह समुद्र।
कभी तो सुनो ध्यान से बैठ समुद्र के किनारे।
समुद्र किनारे की आवाज़।
समुद्र किनारे की आवाज़।