सियासत
सियासत
सियासत भी हम पर बहुत एहसान करती है
हमारी आवाज़ छीन लेती है चीज़े दान करती है
अवाम की आँखों में यूँ पड़ जाता है जब ताला,
सियासत की अंधभक्ति में अँधा काम करती है।।
वो देखने भी नहीं देता इन्हें सुनने भी नहीं देता
दिमाग से हो गए पैदल वो चलने भी नहीं देता
दिखा के दिवस्वप्न भी खूब लोगो को सपनो में
छीन कर रोजगार रोजगार करने भी नहीं देता।।