Ânkît Môüryâ

Tragedy

5.0  

Ânkît Môüryâ

Tragedy

सिर्फ तुम

सिर्फ तुम

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ना जाने उस दिन वो क्या छिपा रही थी

कि बिन मौसम के भी बरसात आ रही थी


कि उन ठहरी  निगाहों में  नमी तो बहुत थी

लगता है शायद कही उसे मेरी याद आ रही थी


क्या बताऊँ तुम्हे

कि जिंदगी में पीछे क्या छोड़ कर आया हूँ 


कि जिसकी हँसी पे जिंदा था

आज उसे रोता छोड़कर आया हूँ


हम रोए तो बहुत मगर मुँह फेर कर रोए

बड़े मजबूर थे जो दिल तोड़ कर रोए

उनके सामने करके उनकी तस्वीर के टुकड़े

उनके जाने के बाद उसे जोड़कर रोए



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