सिंदूरी साँझ में..
सिंदूरी साँझ में..
सिंदूरी साँझ में
सूरज को विदा देने
मैं जब छत पर आता हूँ
अतीत के संदूक से
कुछ स्मृतियाँ निकाल लाता हूँ
ज्यों ही उन स्मृतियों का चित्रांकन
सूरज के वर्तुल पटल पर करता हूँ
सदैव की भाँति उसकी सिंदूरी
और गहरी होती जाती है
वह उस पर आपतित होती
मेरे हृदय की वेदना से
विक्षुब्ध होता चला जाता है
किंतु परिशुद्ध प्रेम के सम्मान में सूरज
प्रेम के सुर्ख़ रंग में
मुझे व स्वयं को रंगता है
और डूब जाता है
दे जाता है
एक उम्मीद की किरण
कि कल
एक नई सुबह ज़रूर होगी।