सिकंदर जिंदगी के
सिकंदर जिंदगी के
ज़िन्दगी की गद्दारी से कई सिकंदर हारे हैं
पर सिकंदर तो जांबाज़ योद्धा हैं रुके -झुके -थमे कभी कहाँ हैं
परदे के उठते ही फिर से उठ कर चमकने लगते हैँ जो,
परम-प्रतापी, जांबाज़ सिकंदर असलियत मेँ कहलाते हैं वो.
गद्दार अगर जिंदगी है तो खुदा की रहमत भी कहाँ कम है,
छोटा पड़ जाता समूचा संसार, इनायतों मेँ उसकी उतना दम है.
ज़िन्दगी की गद्दारी से यूँ तो कई सिकंदर हारे हैं,
पर जो हार से हार मान गए,वो सिकंदर आखिर किस बात के हैं?
सिक्का चलता जिसका हर दम,जो है खिलाड़ियों का खिलाड़ी, वही असली सिकंदर है,
हार के समक्ष कदापी न होता नतमस्तक,
विजय भले ही मुँह मोड़ ले पर शान से रथ हरदम जिसका चलता रहता,
सीखा जिसने हर मुसीबत से डट कर मुकाबला करना,
सिकंदर तो असली वही है ज़िन्दगी का, हीरो वास्तव मेँ है वही,
मुश्किलों से घबरा कर पीछे हट जानें का ख्याल लेशमात्र न जिसके मन- मस्तिक्ष मेँ कभी.
तूफ़ानों ने झुकाने का प्रयत्न किया कितना भी,पर हौसला गिरा ना जिसका तनिक भी ,
आसमान भी झुक गया जिसके आगे, शिकस्त से शिकवा न किया जिसने कभी भी ,
ज़िन्दगी की गद्दारी को गले से लगा थामी ना अपनी रफ़्तार कभी भी,
विजयरथ भले ही थम गया हो,विजय की प्यास कम ना हों पाई जिसकी कभी भी,
असली सरताज़ और एक जांबाज़ सिकंदर है बस वही...
