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Alka Pramod

Abstract

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Alka Pramod

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सीढ़ी

सीढ़ी

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मैं अकेला हूं

और मेरे आसपास

कोई नहीं है।


मैं ऊपर आकाश में

चमक रहा हूं

ध्रुव तारे सा

जो अलग है सबसे

चमकता सा

सब हैं धुंधले

मुझ जैसा कोई नहीं है


अकेला रह गया मैं

पता नहीं कब़

मैं चढ़ता रहा सीढी

गुम हो गये अपने सब

आज ढूंढ रहा मैं

उनका पता नहीं है


मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं

छूना चाहता हूं उन्हे

मेरी शक्ति असीमित है

पाना चाहता हूं उन्हे

पर फिर भी

वो मेरी पहुंच में नहीं हैं


मेरे चारों ओर फैली है

जगमगाती रश्मियां

इस जगमग में आंखे

मेरी गयी हैं चौंधियां

टटोल रहा हूं मैं पर

शून्य ही हर कहीं है


मैं लौटना चाहता हूं

अपनो के पास

वो नहीं मिलते

मैं हूँ उदास

और वह सीढ़ी

जिससे मैं चढ़ा था

अब वहां नहीं है


मैं अकेला हूं

और मेरे आसपास

कोई नहीं है।


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