काश
काश
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देने को प्रकाश हमको
मोमबत्ती से जलते रहे,
पिघलते रहे चुकते रहे
हम आगे बढ़ते रहे,
उस रोशनी में खोए
हम नही देख पाये
पिघलना उनका,
चुकना उनका,
हम तो उन्हे
मान कर वट वृक्ष
पाते रहे छाया,
कब हुए वह दुर्बल
मन नही जान पाया,
आज जब प्रकाश बुझने को है,
मोम चुकने को है,
वह माँग रहे हमारे
कंधों का सहारा ,
हम देते हैं उन्हे
सुविधाओं का पिटारा,
उन्हे स्टैंड से
हम हटा देते हैं ,
किसी बैसाखी के सहारे
टिका देते हैं,
और जब वह
जड़ गये तस्वीर में
हम लगवाते पत्थर
उनके नाम के,
कर्मकांड घंटो करते
छुट्टी ले काम से,
काश !कि हम उनका मन
समझ पाते,
उनके जीते जी उनके साथ
कुछ पल बिताते,
उन्हें तो चाहिये था
कुछ समय हमारा,
वही था उनके
जीने का सहारा ।