सीधी बोली
सीधी बोली
काट चट्टानों को बहता, कोमल सा जल बतलाता।
रुकावट हो कितनी भी विशाल,
हार मानती एक दिन बस तुम मत हार जाना।
उज्जवल बुलबुले, बनते /फूटते ,
क्षण भंगुर, जीवन नाटक के अस्थाई पात्र से!
अभिमान न करना तनिक भी, समझाते।
तुम आए हो, जाओगे। जो आया है, जाएगा।
धारा बन जाना, बुलबुले का फूट कर,
अनंत में तुम भी मिल जाओगे।
शोर ! पानी गिरने का ऊँचे से,
एक बात पते की बतलाता।
कितने भी उदघोष हो जय के तुम्हारी,
सदा कोई नहीं रह पाता।
ले जाता मीठी सी यादें,
शीतल /स्वच्छ जल से, जो प्यास बुझाता।
कितना भी शोर मचाओ? ऊंची हवेली बनवाओ।
याद रह जाओगे, जब किसी के काम आओगे।
बिन कॉपी /बिन पेंसिल, झरना क्या क्या सिखलाता।
इसकी सीधी सी बोली, पर क्यों, कोई नहीं पढ़ पाता?
