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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Fantasy

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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract Fantasy

सीधी बोली

सीधी बोली

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काट चट्टानों को बहता, कोमल सा जल बतलाता।

रुकावट हो कितनी भी विशाल, 

हार मानती एक दिन बस तुम मत हार जाना।

उज्जवल बुलबुले, बनते /फूटते ,

क्षण भंगुर, जीवन नाटक के अस्थाई पात्र से!

अभिमान न करना तनिक भी, समझाते।

तुम आए हो, जाओगे। जो आया है, जाएगा।

धारा बन जाना, बुलबुले का फूट कर,

अनंत में तुम भी मिल जाओगे।


शोर ! पानी गिरने का ऊँचे से,

एक बात पते की बतलाता।

कितने भी उदघोष हो जय के तुम्हारी,

सदा कोई नहीं रह पाता।

ले जाता मीठी सी यादें,

शीतल /स्वच्छ जल से, जो प्यास बुझाता।

कितना भी शोर मचाओ? ऊंची हवेली बनवाओ।

याद रह जाओगे, जब किसी के काम आओगे।

बिन कॉपी /बिन पेंसिल, झरना क्या क्या सिखलाता।

इसकी सीधी सी बोली, पर क्यों, कोई नहीं पढ़ पाता?



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