शत वंदन
शत वंदन


है पाँच तत्व से बनी देह
पर इसको माँ ने पाला है।
अपनी पावन ममता से इन
नयनों में भरा उजाला है।।
उसकी सांसों ने सांसें दीं
दे रक्त माँस तन को पाला।
नौ मास कोख में रह माँ की
पाया शरीर है यह आला।।
जिसकी छाया में तन पनपा
लगने कुछ तप्त पवन पाई।
तरु सदृश पिता के साए में
सुख शांति बनी निद्रा आई।।
खुद लाखों कष्ट सहे लेकिन
सन्तति को सुख सौभाग्य दिया,
भूखे प्यासे रह स्वयं सदा
बच्चों को सुख का राज्य दिया।।
अमृत के सम पयपान किया
यह तेज़ ओजमय तन पाया।
फिर थाम पिता की उंगली को
शिक्षा पाई जीवन पाया।।
शिशु के मन की पीड़ा नित ही
माँ के दृग में दिख जाती है।
ब
च्चों की भूख मिटाने को
बाजारों में बिक जाती है।
इह लोक सहारा करती है
परलोक संवारा करती है।
माता कुम्हार शिशु तन घट से
गह खोट निखारा करती है।।
गीली मिट्टी के लोंदे को
पहचान दिलाते मात पिता,
सुख की यश छाया में अपने
दुख दर्द भुलाते मात पिता।
वे ही तो आंचल में शिशु के
सब अश्रु सहेजा करते है,
फिर वही वतन की रक्षा हित
सीमा पर भेजा करती है।।
देवों में सदा सुपूजित है
पालक महिमा जग से न्यारी ,
उनके महत्व के वर्णन में
विद्या की देवी भी हारी।।
हँस कर न्योछावर कर देते
संतति पर अपना नंदनवन ,
उन मात पिता का शत वंदन।
शत बार उन्हीं का अभिनंदन।।