शशिबाला
शशिबाला
हे शशिबाला !
तेरे नयन के अश्रु ;
क्यूँ गिर रहे हैं वसुधा पर
क्यूँ इतना घबराई हैं तू
क्या पहाड़ टूट गया
या कोई छोड़कर गया
क्यूँ बिखरें हैं,
ये अश्रु... !
मुझे भी तो बताओ !
धूमिल रंग हैं,
तेरे चेहरे पर..
कुन्तल बिखरें हैं,
तेरे गाल पर..
गरम- गरम अश्रु
होंठ के पटल पर..
क्या हुआ हैं शशिबाला !
क्यूँ उड़ गए हैं,
तेरे चेहरे से उजाला !
बातें भी मुख से फूटते नहीं
नज़र भी कुछ कहती नहीं,
यहाँ- वहाँ.. !
कुछ मुझसे भी नहीं बोलती
चेहरे पर खुशियाँ भी नहीं बिखरती
मैं भी जानना चाहता हूँ।
मैं दर्द पहचानता हूँ;
इसलिए बोले.. !
हे शशिबाला !
क्यूँ हैं इतनी उदास !
क्यूँ शशि टूटकर बिखर गए..
तेरे चेहरे से !
जो इतनी व्याकुल हो !
जैसे कोई चीज गायब हो गई हो
इसी प्रकार चेहरे की हालत,
बिगड़ी नजर आती हैं।
हे शशिबाला !
क्या हुआ !