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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Action Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Action Classics Inspirational

संभव और असंभव

संभव और असंभव

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एक बार "असंभव" कहीं को जा रहा था 

नकारात्मकता के बोझ से दबा जा रहा था 

ना तो आंखों में कोई आशा की किरणें थीं 

और ना ही चेहरे पे विश्वास नजर आ रहा था 


दिल में मनोबल की बहुत कमी सी थी 

और कुछ कर गुजरने का साहस भी नहीं था 

आलस्य जैसे साथी के साथ होने के कारण 

मंजिल तक पहुंचने का कोई उत्साह भी नहीं था 


छोटा सा रास्ता भी अंतहीन सा लग रहा था 

सोच सोच के "असंभव" मन ही मन डर रहा था 

उलझनों की भूलभुलैया में फंसा हुआ सा था 

झूठे दिलासों के दलदल में धंसा हुआ सा था 


तब उसने देखा कि "संभव" दौड़ा चला जा रहा था 

आशा और विश्वास से उसका चेहरा जगमगा रहा था 

स्फूर्ति के कारण वह बहुत हल्का नजर आ रहा था 

सकारात्मकता के परों से जैसे उड़ा चला जा रहा था 


उसने दृढ इच्छाशक्ति के बेशकीमती जूते पहने थे 

उसके शरीर पर आत्मबल रूपी ढेर सारे गहने थे 

परिश्रम और साहस, ये दो साथी उसके साथ थे 

हर हाल में मंजिल तक पहुंचने के उसके जज्बात थे 


संभव को अनवरत चलते देख असंभव को जोश आ गया 

मंजिलें कैसे मिल जाती है, आज उसे भी ये होश आ गया।


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