शर्त
शर्त
मेरी पत्नी ने शर्त लगाई
बहुत दिनों से हँसे नहीं
हँस कर दिखाओ, साई
मैं भी मंद मंद मुस्काया
यह तो बाएँ हाथ का खेल
जीत ही लूँगा,होगी बढाई
सोचा थोड़ा अभ्यास कर लू
पेपर तभी हाथ में आया
रसोई गैस का दाम
फिर बढ़ा हुआ पाया
गाल एकदम पिचक गए मेरे
नाश्ता एक तरफ़ सरका
आफिस की तरफ़ कदम बढ़ाया
दिन भर सर ख़फ़ा
शाम को जब घर आया
बीबी ने याद दिलाया
शर्त का चक्र घुमाया
मानव बुद्धि,तर्क से घिरा पाया
बजट तो अच्छा था
वेतन भी बढ़ा था
मेरी हँसी पर कौन सा
नया कर लगाया
खाद्य,पेय, बिजली
सब पर नज़र दौड़ाई
मेरी वेतन वृद्धि से ज़्यादा तो
सबकी क़ीमतें बढ़ी नज़र आई
मैंने पत्नी को बोला
शर्त नहीं हारा मैं
मेरी हँसी को मँहगाई की
नज़र लग गई भाई॥