श्रमजीवी औरतें
श्रमजीवी औरतें
कालीनों पर नहीं चलतीं ये औरतें
नरम गद्दो पर नहीं सोती ये औरतें
कंकरीले पथ पर चलती हैं
इमारतें यूं ही नहीं बनाती
पसीने की बूंदों से सींची जाती हैं
रोटी की खातिर नमक बहाती औरतें
सिर पर ईंटें ढोती हैं
चूल्हा जलाने की फ़िक्र हर दिन ही होती है
यौवन को धूप में तपाती कब
लोहे से रंग में बदल जाती है
शाम ढले तक मुस्कुराती रहती हैं
कठिन श्रम कर रात में गीत गाती हैं!