श्रीमद्भागवत -२२३; नंदबाबा की गोपों से श्री कृष्ण के प्रभाव के विषय में बातचीत
श्रीमद्भागवत -२२३; नंदबाबा की गोपों से श्री कृष्ण के प्रभाव के विषय में बातचीत
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
अलौकिक कर्म देखकर कृष्ण के
गोप जो थे व्रज के सारे
बड़े आश्चर्य में पड गए वे।
इकट्ठे हो आपस में कहने लगे
अलौकिक हैं इस बालक के कर्म बड़े
एक ही हाथ से गिरिराज उखाड़ लिया
बात बात में नन्हे बालक ने।
खेल खेल में सात दिनों तक
धारण किया था गोवर्धन को
साधारण मनुष्य के लिए भला
ऐसा कर्म कैसे संभव हो।
जब यह नन्हा सा बच्चा था
पूतना के प्राण पी लिए इसने
बड़ा भारी छकड़ा गिरा दिया
जब तीन महीने का था ये।
गाला घोंट मारा तृणवृत को
जब एक वर्ष का था ये
अर्जुन वृक्षों को उखाड था डाला
बांधा गया था जब ऊखल से।
बगुले के रूप में जो दैत्य इसे
मारने आया था उसको इसने
दोनों ठोरों से पकड़कर
चीर डाला अपने हाथों से।
बछड़े के रूप में जो दैत्य आया
खेल खेल में मार डाला उसे
गधे के रूप वाले धेनुकासुर को
मारा भाई बलराम के साथ में।
प्रलम्बासुर को मरवा डाला
बलराम जी के द्वारा इसने
गोपों, ग्वालबालों को बचाया
धधकते हुए उस दावानल से।
यमुना के विषैले कालियनाग का
भी मान मर्दन किया इसने
जल को अमृतमय बना दिया
निकाल कर उसे यमुना जी से।
नन्द जी हम यह भी देखते
तुम्हारे इस सांवले बालक पर
व्रजवासिओं का अनन्य प्रेम है
इसका स्नेह भी हम सबके ऊपर।
व्रजराज, इसी सब से तुम्हारे
पुत्र पर हमें शंका हो रही
नंदबाबा ने कहा, गोपो अब
बात सुनो ध्यान से तुम मेरी।
महर्षि गर्ग ने इस बात के
विषय में ऐसा ही कहा था
‘ तुम्हारा ये बालक प्रत्येक युग में
एक शरीर ग्रहण है करता।
विभिन्न युगों में विभिन्न रंग इसके
कृष्णवर्ण हुआ इस बार ये
गोप गोपियों को आनंदित करेगा
तुम सबका कल्याण ये करे’।
अतः इसके अलौकिक कर्मों को
देख आश्चर्य नहीं करना चाहिए
गोपो ये उपदेश देकर गर्ग जी
अपने आश्रम पर चले गए।
तब से अलौकिक और सुखमय
कार्य करने वाले इस बालक को
नारायण का अंश मानता मैं
यही कहना चाहता मैं तुमको।
व्रजवासिओं ने नंदबाबा से
गर्ग जी की यह बात सुनी तो
उनका सारा विस्मय जाता रहा
कृष्ण और नन्द की प्रशंशा करें वो।