शोरे ऐ दिल
शोरे ऐ दिल
इस दौर में जीने की, दुआ दें तो किसे दे।
मुश्किल है ये तय करना, दग़ा दे तो किसे दे।।
इंसान नहीं करता गुनाह, शौक़ की ख़ातिर ।
ऐसे में कहें आप, सज़ा दे तो किसे दे।।
हर शख़्स है हक़दार,पज़ीराई का इस जा।
है पास फ़क़त एक रिदा, दे तो किसे दे।।
साँसों का सितम,ज़िस्म को, करता है परेशां।
इस क़र्ब ए मुसलसल की सजा दे तो किसे दे।।
गमख़्वार कोई और, दिखाई नहीं देता।
इमदाद की तुझको न, सदा दें तो किसे दे।।
मायूस ओ मुफ़लिस ही ख़ुदा ढूँढ रहे हैं।
उनको को न अग़र, उसका पता दे तो किसे दे।
पुछा जो 'शशि' से तो, हमें उसने बताया।
ये फ़िक़्र है,एजाज़ ए वफ़ा, दे तो किसे दे।।