शोर भी है
शोर भी है
शोर भी है
सन्नाटा भी है
और खामोशी की चहल पहल भी।
जैसा भी है
स्वीकार्य है
और नजर में है
और जो दिख रहा है
उसे शब्द दें तो,
अभूतपूर्व असंतुलन में
संतुलन कायम हो रहा है,
ऐसा इसलिये नहीं है कि
हम बदल रहे हैं
ऐसा इसलिये कि
हम अनुभव कर रहे हैं
और अनुभव को शब्द दे रहे हैं,
जिम्मेदारियां
निभा रहे हैं
और अपना होना महसूस कर रहे हैं,
यहाँ संदूषित विचारों की
दुर्गंध नहीं
नयेपन की खुशबू है
और ये नयापन भी कुछ नया नहीं है
बस धूल झड़ रही है,
अप्रसांगिक हो चले विचारों की
परपंराओं की
जिनके अधीन से हो गये थे हम
ये नयापन कुछ और नहीं है
बस अपना होना भर है
और अपना होना
किसी युद्ध से कम नहीं है
और यही युद्ध चल रहा है
जीवन के चारो ओर
पूरी दुनिया में।
