शिव
शिव
कैसा है रूप तुम्हारा
कही रौद्र कहीं सौम्य
सृष्टि के प्रतीक नृत्य, प्रवाह, लय, छंद, गति
कही ज्वाला कही फूल मन का संताप मिटाते
अहंकार, भ्रम का नाश करते
तुम्हीं तो हो
सृजन के निरंतरता
जीवन चक्र
पुरातन से नूतन की ओर
मरण से जीवन की ओर जिसका कोई ओर ना छोर
महाकाल, भैरव, रूद्र महादेव, शिव, भोलेनाथ,
सुर, ताल, सरगम, स्वर विषधारक, नीलकंठी
एक में अनेक
तुम्हीं तो हो
महान योगी
पर सब रसों के संगम
हर हर महादेव।