शिव की महिमा
शिव की महिमा
ब्रह्माण्ड के कण कण में जो विद्यमान है
आदि है अंत है जो सर्वशक्तिमान है
जिसकी न कोई सीमा है और जो अनंत है
रुद्र है,सौम्य है,अघोरी है और संत है
मृत्युंजय भी है वो और महाकाल है
विस्तार जिसका आकाश से पाताल है
कैलाशी भी है वो,वो ही सोमनाथ है
त्रिलोकी भी है जो और विश्वनाथ है
गले में माला सर्प की हाथ में त्रिशूल है
क्रोध भी है जिसमें और जो प्रफुल्ल है
भूत और पिशाच सारे जिसके अधीन है
सर्वव्यापी है जो और जो ध्यानलीन है
अनेक नाम वाला है वो और निरंकार है
डमरू लिए हाथ में वो नन्दी पर सवार है
जनक है सृष्टि का और वो ही शब्द ओम है
जल भी है,पृथ्वी भी है वो और वो ही व्योम है
हलाहल विषपान करके नीलकंठ कहलाया है
चन्द्रधारी है जो और मोहक जिसकी काया है
जटाओं ने जिनके गंगा को संभाला है
भोला भी है वो और वो ही डमरूवाला है
बेलपत्र और भभूत से हो जाता जो प्रसन्न है
तप है, जप भी वो है उससे ही सर्व उत्पन्न है
भूत भी,भविष्य भी है और जो वर्तमान है
उस दिव्यरूप को इस भक्त का प्रणाम है