शीर्षक- फैसला
शीर्षक- फैसला
हक जो तेरा था तू आजमाता ही रहा
कभी मुझे हँसाता और रुलाता ही रहा
प्यार मे तेरे सँवरते,बिखरते, रूठते हम रहे
पर अफसोस मुझे खिलौना बना छलता तू रहा
तेरे इंतजार मे ता उम्र रहेगे
कठपुतली बन कर
ये डगर भी तो हमने चुनी है
प्यार हद से ज्यादा किया तुमसे
इस कदर तेरे हर फैसले मे चुप्पी साध ली है
हम मरे या जिंदा है
उसकी भी तूने खबर ली है।
हमने प्यार ही तो किया था।
या गुनाह इस की भी तो खबर नही है।
ज्यादा या कम पर ,आखिरी स्वांस तक
ये फितूरे-आशिकी निभाने का है।
तुझे मंजूर मेरे आँसू तो
ता-उम्र हमे आँसू बहाना है।
तेरे दिल मे जगह मिली थी, पिघलने लगे मोम से
जब दस्तक हमे देकर बुलाया था।
आज कैद तेरी धड़कन मे हुए
इस कदर
अब तो रिहाई भी नही
तेरे इश्क मे तड़पकर मरे या
तेरे रहम की नज़र को तड़पे
इश्क करने की सज़ा मे
तड़पना ही नसीब ,लाखो खामियां निकाल लेते हो
मेरे प्यार को काश! देखा होता
तेरी तस्वीर को यादो मे संजो कर
आराम से कट रही है।
जिंदगी मेरी
तेरी डीपी को देख कर जी लेते है
तेरी बातो को सोचा करते है।
शायद कभी तुम लौट आओ
इस आस के सहारे
अब तक जिंदा है.......