शीर्षक:अंनत ख्वाहिशें दिल मे
शीर्षक:अंनत ख्वाहिशें दिल मे
अनंत ख्वाहिशें दिल में लिए मैंने उठाई लेखनी
लिख डाले जज्बात अपने सारे शब्द रूप में क्योंकि
शब्द रहित होते हुए भाव निरीह से लगते थे मुझे
मेरी लेखनी तो शब्दों का अथाह सागर हैं तभी तो
अनंत ख्वाहिशें दिल में लिए मैंने उठाई लेखनी
मौन थी तो समझ ही नहीं पा रहा था मेरी व्यथा
आज जब आवाज मेरे शब्दों ने ली तो सुना सभी ने
मेरे मन के अंतर्द्वंद को आज शीतलता सी मिली
अनंत ख्वाहिशें दिल में लिए मैंने उठाई लेखनी
मेरी खुद की भी ताकत अब नहीं थी उत्तर को
मेरे मौन को मेरी लेखनी का मिला सम्बल
चल उठी वह मझ बेचारी लाचार सी के लिए
अनंत ख्वाहिशें दिल में लिए मैंने उठाई लेखनी
शब्द रूप जब माला बन जाते तो भाव आ जाता हैं
अद्भुत अखंडित ताक़त होती हैं शब्दों की अपनी
कह देते हैं मन में दबे भाव, उद्गार दिल में दफ़न।