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Bhavna Thaker

Drama

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Bhavna Thaker

Drama

शह मात

शह मात

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खुद ही खुद में खोया हुआ

मगन है हर इंसान 

कहता सुनता कोई नहीं 

एक दूजे की बात।


बाहरी मन है चोखा दर्पण 

भीतर बिछी शतरंज है

मोहरे सबके छुपे छुपाये

चाल किसी की समझ न पाये। 


मिश्री हर पल घोले लब पर

नैनों के कटोरे छलकते जाये 

कटुताओं के जाम से

सब ही खुद को राजा समझे।


अपनी अपनी सियासत का

शह मात का खेल है खेले

हर कोई इंसान यहाँ 

नीत नयी चालों से गिराते।


मनसूबे एक दूजे के

मुँह पर ओढ़े नकाब चौले

अपने ही वजूद से घिरा 

खुद की खाल लपेटे।


स्वार्थ देखे जिस में उसका 

उसीके पीछे दौड़े भागे

रिश्तों का नहीं मान यहाँ

इंसान ही इंसान का दुश्मन जहाँ।


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