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Vandana Srivastava

Inspirational

5.0  

Vandana Srivastava

Inspirational

शब्दों से भरपूर मौन..

शब्दों से भरपूर मौन..

1 min
523


खुली किताब सा है जीवन किंतु यह माने कौन,

पढ़ते तो सब हैं परन्तु मुझे समझना चाहे कौन ,

भरे पड़े हैं शब्द इसस उजले से हर इक पन्नों पर ,

चीख के भीतर छिपे इस मौन को पहचाने कौन,


एक सजावट का आवरण सा चढ़ा रखा है,

अपनी टूटन पर मोटा जिल्द चढ़ा रखा है,

बिखरी पड़ी है गर्द मेरे नष्ट होते वजूद पर,

सड़क के किनारे मुझे रद्दी सा सजा रखा है,


हर्फ हर्फ फैली मुझ पर कलम की रौशनाई है ,

शब्दों से भरपूर लेकिन भीतर मौन की पऱछाईं है,

देख रही हूं रास्ता उसका जो मेरा मौन पढ़ ले,

भीतर घुलते शब्दों की प्रचंड ज्वाला को जी ले,


शब्द ब्याकरण क्रिया विशेषण से भरपूर हूं ,

फिर भी जो मेरे पन्नों को सहेजे उससे बहुत दूर हूं,

फडफड़ाते हुये पन्ने हवाओं से पलटते जा रहे हैं,

मुड़े हुये हाशिये तिकोने कोनों में बदलते जा रहे हैं ,


एक उम्र गुजरी है आलमारी पर सजे हुये इंतजार में,

कुछ पन्नों भीतर सूखा गुलाब है लिपटा सिलवटों में,

कभी जो डूबा रहता था महकती इत्र की आशनाई में ,

वक्त के साथ गुमशुदा हो गई मुस्कुराहट तमाशाई में,


अब कुछ राज मैं भी अपने भीतर समेटना चाहती हूं,

भूल कर सारी आजमाइश मैं इश्क करना चाहती हूं,

जकड़न हर्फों की मै अब जंजीरें तोड़ना चाहती हूं 

हॉं मैं मौन की दुनिया से आजाद होना चाहती हूं..!!

हॉं मैं मौन की दुनिया से आजाद होना चाहती हूं..!!


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