शब्द दुआओं में बदलते हैं
शब्द दुआओं में बदलते हैं
वह अपने ख़ूबसूरत कल्पना के पंख ....
लगाकर नीले आसमान में उड़ना चाहती है !
वह अपने सुन्दर सपनों को सच में बदलना
चाहती है !
वह क्षितिज के उस छोर तक जाना ,
चाहती है .....
जहाँ यथार्थ में जाना माना है !
वह उगते सूरज की किरणों के साथ,
मिलकर उस अमावस की रात के ..
अंधेरे को दूर करना चाहती है ...
जो अंधेरा डराता है ,जो अंधेरा भयानक ..
व्यूह रचता है !!
जो अंधेरा मन को कमज़ोर करता है
वह मन के भीतर तनाव की परतों को..
झाड़ कर ...वहाँ ताज़े फूल रखना चाहती है!
क्योंकि वह मानती है कि विज्ञान के यान से
छू लिया है आसमान !!
पर मन के भीतर छुपे भावों से रहते हैं हम
कितने अनजान !!
उस अनकहे दर्द को , उस अनसुनी व्यथा को ,
उस अनदेखे दृश्य को उस कोमल मन की ,
अनुभूति को ....
वह सबके समक्ष रखना चाहती है !!
वह मन की पीड़ा को
चेहरे की उदासी को , अवचेतन की चिंता को
दिल के अवसाद को अपनी कलम.... से
व्यक्त करना चाहती है !
ताकि उसके आसपास खुशियों की बौछार हो
ताकि समाज में नफ़रत की जगह प्यार ही प्यार हो !
क्योंकि वह मानती है क़लम की स्याही से जो
शब्द झरते हैं....वह समाज के हित के लिए लिखते हैं
वह दुआओं को सिर्फ लिखते ही नहीं वरन वह शब्द
दुआओं में भी बदलते हैं !
