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शायद

शायद

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मैंने कुछ कहा अभी - अभी,

शायद तुम सुन नहीं पाए;

देखा तो था आंखों की कनखियों से मगर,

जो पढ़ा मेरे चेहरे पर,

वो कह नहीं पाए।


खयालों में गुम हो,

या यूं ही तवज्जो नहीं दी?

सोचा बातें करने का,

या चाय की सिसकियों में,

ध्यान दे नहीं पाए?


मैंने कुछ मांगा अभी - अभी,

शायद, हां शायद तुम सुन नहीं पाए;

"कभी और" कह के भी ना टाला,

हवा के झोंके आए,

आवाज़ गुम गई, और रह नहीं पाए।


तुमसे कोई शिकवा भी करूं तो क्या,

कभी मेरे कहने को तुम थे ही कहां;

तुमने मुस्कान दी थी हां,

वो एहसान था तुम्हारा,

या मजबूरी, ये बता नहीं पाए?


मैंने कुछ चाहा अभी - अभी,

शायद तुम सह नहीं पाए;

कुछ और ख्वाइश है तुम्हारी,

या किसी और के साए को दिल से निकाल,

अब तक दफना नहीं पाए?


तुमसे जुदा है ज़िन्दगी मेरी,

फरियाद भी किससे करूं;

तुम किसी और की ज़िन्दगी का नूर हो शायद,

ये जानते हो कहीं ना कहीं,

बस मुझसे ये झुठला नहीं पाए।


मैंने कुछ कहा अभी - अभी,

शायद,

हां शायद,

तुम सुन नहीं पाए।


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