शाम-ए-उदासी
शाम-ए-उदासी
एहसासों की नदी जम जाए तो अच्छा है।
शम्मा उम्मीदों की बुझ जाए तो अच्छा है।
आना जरूरी था, तेज हवाओं का भी,
है पर्दा भरम का हट जाए तो अच्छा है।
बन के सूरज दिन भर जलता रहा दिल,
ये शाम-ए-उदासी ढल जाए तो अच्छा है।
ये आवारा बादल, हुई बेमौसम की बारिश,
घर की उजड़ी छतें हैं थम जाए तो अच्छा है।
ये सुनहरे सपनों की हैं रोती मजारें
अश्कों के दो फूल चढ़ जाए तो अच्छा है।
