सड़कें
सड़कें
वो सूनी पड़ी सड़कें
फिर हैं एक दौर में
कभी ना खत्म होते
उसके इंतज़ार में
इंतज़ार जो बढ़ा
और बढ़ता ही गया
जिसे लौटना था
वो लौट नहीं पाया
लंबा समय गुज़रा
आहट भी ना हुई
फिर उसके आने की
थोड़ा सा सताने की
वो भी एक दौर था
चर्चा हर ओर था
कुछ कर दिखाना था
नाम बड़ा बनाना था
तो एक इरादा हुआ
और एक वादा हुआ
लौटूंगा इन गलियों में
रहूंगा तो इन्हीं गलियों में
बस उसी वादे की ख़ातिर
जिन राहों ने किया माहिर
एक बार तो लौटना था
ये दिल यूं तो ना तोड़ना था
पर फिर भी ये सड़कें
बैठी हैं एक आस लगाए
कभी ना खत्म होते
उसके इंतज़ार में