सच्चाई
सच्चाई
मानों ना मानों पर,
सच को तो स्वीकारो,
झूठ के बादल से,
सच के सूर्य को ना ढापो,
मानों ना मानों पर,
मौसम तो बदलेगा,
तुम भी विचारो के
बदलाव को,
अंतर्मन से मानो,
मानों ना मानो पर,
दिन तो ढलेगा,
गहराएगा तिमिर,
अँधेरा पसरेगा,
नव प्रकाश के,
उद्भवास को पहचानों
मानों ना मानों पर,
ये देह मिट्टी है,
वजूद ,मुकाम,हासिल,
सब होना मिट्टी है,
पर जिजीविषा की
उत्कंठा को दोनों,
हाथों से कसकर थामो।
