सच कहता हूँ
सच कहता हूँ
फिकर नहीं होती है जिनको, जीने और मर जाने की।
फिकर नहीं होती है जिनको, कुछ खोने कुछ पाने की।।
नहीं कभी ऐसे जन मुश्किल में घबराया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।
जो समाज के ताने सुनकर भी परवाह नहीं करते हैं।
जो समाज के ठेकेदारों से भी तनिक नहीं डरते हैं।।
वे समाज से एक दिवस स्वागत करवाया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।
कलम नहीं जिनकी रुकती है दहशत के औजारों से।
पर्दाफाश किया करते हैं अपने सत्य विचारों से।।
वे समाज के प्रेरक बन सब दिल पर छाया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।
जो पर सेवा में अपना तन ,मन ,धन अर्पित करते हैं।
अत्याचार, अन्याय के आगे कभी नहीं जो झुकते हैं।।
ऐसे जन की गौरव गाथा कवि गण गाया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।
शोषित और उपेक्षित जन की जो लाठी बन जाते हैं।
निंदा और प्रशंसा को जो हँसकर गले लगाते हैं।।
अपने जीवन के इक पल को कभी न जाया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।
विपदाओं सम परबत भी जिनके सम्मुख शर्माते हैं।
जिन्हें देख भय के सागर भी हाथ मीज पछताते हैं।।
वे सत्य अहिंसा और शांति के पुष्प खिलाया करते हैं।
सच कहता हूँ ऐसे जन इतिहास बनाया करते हैं।।