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Preeti Agrawal

Fantasy Others

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Preeti Agrawal

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सबसे मधुर लम्हा

सबसे मधुर लम्हा

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था पहला महीना नये साल का, बीसवीं सदी के अंतिम वर्ष का 

जब एक नया सूरज मेरे जीवन में आया, ढेर सारी खुशियां लाया

कुछ बेचैनी सी, कुछ घबराहट सी, हर पल मुझको महसूस होती

समझ नहीं आया कुछ, क्या हो रहा मेरे भीतर ही भीतर


इक दिन सुबह जी मचलाया, खाने में मन को कुछ न भाया

आहट थी तुम्हारे आने की, पर अबोध मन कुछ समझ न पाया

अब था यह नित्य क्रम, असमंजस में था ये चंचल मन

जब महसूस किया मैंने, इक नये जीवन का स्पंदन 

रोमांचित हो उठा रोम-रोम, पुलकित था अब मेरा मन

आंसू थे जो बह निकले, होठों पे थी इक मुस्कान 

मन मयूर बन थिरक उठा, हर पल-हर क्षण अब था जीवन नया


दिल की धक्-धक् से मन हर्षाया, धीरे-धीरे तुमने रूप बढ़ाया

इक नये जीवन की वो आहट, जिसने नया सवेरा दिखलाया

सूने से मेरे घर आंगन को, तुमने अपने वजूद से महकाया.

 वो क्या था अहसास मुझे, कैसे बतलाऊं मैं तुमको

जब तुम अपने जन्मदिन के दिन, गिनने की करती हो शुरुआत

क्या कहूँ  बेटी मेरी, कैसे बिताए मैंने वो नौ मास

आखिर वो दिन आ ही गया, जब आईं तुम मेरे पास

वो लम्हा बन गया हमारी जिंदगी का बहुत ख़ास

तुमने ही दिया हमें माता पिता बनने का सुखद अहसास


 



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