सौन्दर्य की शोभा
सौन्दर्य की शोभा
सुख दुःख अनित्य हैं
काल की धारा में बहते हैं,
ये आते हैं और जाते हैं
यह सुख दुःख का स्वभाव है।
हम अधिष्ठान स्वरूप हैं
अधिष्ठान में कितनी तितिक्षा है,
चाहे दुःख हो चाहे सुख
अपने सौंदर्य की शोभा का नाश नहीं।
तुम प्रतिभाशाली हो
दुःख के सामने कैसे दब जाओगे,
इसका सह लो और आगे बढ़ो
तुमको ये व्यथा न पहुँचायें।
सुख दुःख आवें,आने दो जाने दो,
जो विकार का हेतु आने पर भी
विकृत नहीं होता ,वही धीर है,
वही अमृत तत्त्व का अधिकारी है।
