सौग़ात
सौग़ात
भूल कर अपना ग़म,
मैं...
आज तुम्हारा ग़म पूछता हूं।
न सही अपना...
मैं बेगाना भी तो नहीं।
कहते हैं...
कहने से...
दुःख बॅंट जाता है।
बांट लो .....
अगर चाहो तो।
मगर
बदले में कहीं,
मेरे दुःख मत बॅंटवाने लगना।
क्योंकि....
किसी की दी हुई सौग़ात,
आगे बांटने का...
मुझे कोई हक नहीं।