दिल लगे, तो शायर हम !
दिल लगे, तो शायर हम !
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हर रोज़ टूटते बनते बिखरते दो दिल,
ये न जाने कौन किसे सँभाल रहा है,
दो बरसातो से जिसने रौशनी न देखी हैं,
वो पूरी रात चाँद को निहार रहा है।
शिकवे उसके जिन्दगी से,
और दर्द दिल में बता रहा हैं,
मालूम होता है वो आजकल,
नज़्में गम के गुनगुना रहा हैं।
कल दिन ढलने तक तो देखा उसे,
ये न जाने रातें कहाँ बिता रहा हैं,
सुबह अख़बार पढकर इल्म हुआ,
एक बनजारा गीत नन्हें को सुना रहा हैं।
हर रोज़ टूटते बनते बिखरते दो दिल
ये न जाने कौन किसे सँभाल रहा है ||

