उन्ही राहों पे थे हम
उन्ही राहों पे थे हम
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कभी गाते खेलते हसते,
कभी रोते लड़ते झगड़ते,
कभी चलते पढ़ते बढ़ते,
इन्ही राहों पे थे हम।
जब कोई अपना ना मिला,
जब कोई अपना साथ चला,
जब कोई अपना छोड़ चला,
इन्ही राहों पे थे हम।
कई दिन गए रात गए,
कई ख्वाब हम बुनते गए जाने,
कई वसन्त बरसातें गए,
इन्ही राहों पे थे हम।
चाहत तो हज़ार थे,
राह भी अनेक थे,
दिल की राह चुने थे,
उन्ही राहों पे थे हम |

