सैकड़ों है कारवे यहां पर
सैकड़ों है कारवे यहां पर
सैकड़ों है कारवे यहां पर,
मैं बिछड़ ना जाऊं कहीं
और कितनी दूर है
मंजिल पता नहीं पता नहीं।
सुबह हुई में जागा, जागा ये जहाँ
मगर ख्वाबों में देखा था जो मैंने,
वो जहाँ ये नहीं,
और कितनी दूर है
मंजिल पता नहीं पता नहीं।
मैं प्यासा हूँ प्यास है इतनी,
समुंदर में भी ना जितनी।
मैं पीने से जो बुझ सके
वो प्यास मैं नहीं।
और कितनी दूर है मंजिल
पता नहीं पता नहीं।
मेरे पास जो कुछ भी था
वो औरों को देता रहा।
देकर जो उम्मीद रखूँ
वो सौदागर में नहीं।
और कितनी दूर है मंजिल
पता नहीं पता नहीं।