सावन की पहली बारिश
सावन की पहली बारिश
आसमान में बदली कुछ यूं छाने लगी है,
पहली बारिश की दस्तक अब दिल में आने लगी है,
काली घटाएं घनघोर आसमान में घिरने लगी है,
ठंडी ठंडी पुरवाई दिल में आस जगाने लगी है।
चारों ओर बादलों का शोर मन को डराता है,
छुट पुट बूंदा बांदी प्यासे तन को भिगोता है,
मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू, चारों ओर कुछ यूं महकने लगी है,
जैसे उड़ती धूल को बारिश थपकी देकर सुलाने लगी है।
दूर एक गांव में एक अबोध, मां की गोद में,
लोरियां सुन रहा है,
रुनझुन बरसती बूंदों की लड़ियों में अपने सपने पिरो रहा है,
बारिश की बूंदों से फिजाएं कुछ यूं चहकने लगी है,
पेड़,पौधे,बेल,लताएं तर होकर बारिश में निखरने लगी है।
अब प्रकृति भी नव यौवन सा श्रृंगार किए,
बेसब्री से अपने प्रियतम का बाट जोह रही हैं,
धरती की हरियाली भी झूम झूम कर राग मल्हार गा रही है,
सावन की पहली बारिश ने सबके मन को आनंदित सा कर दिया है,
पशु, पक्षी, मोर, पपीहा में ऋतुओं की रानी ने मधुर स्वर भर दिया है।
प्रकृति भाव विभोर होकर, पग पग में अनुपम सौंदर्य लुटाने लगी है,
ऊंचे पहाड़ों पर छन छन कर कोहरे की चादर, प्रेमियों के मन को बहकाने लगी है,
बारिश की हर बूंद पर कवियों की कल्पनाएं हिलोरें भरने लगी है,
धरती इस नव रूप को पाकर मंत्र मुग्ध, खिल खिला के हँसने लगी है।