हृदय के अपने घाव सभी
हृदय के अपने घाव सभी
सोचता हूँ कि बता दूँ सबसे, मन के अपने भाव सभी।
हृदय खोल कर दिखला दूं मैं, हृदय के अपने घाव सभी।
पर किसी को मन की बातें, बता नहीं मैं पाता हूँ।
हल्की भी आहट होती है, अकारण मैं डर जाता हूँ।
सुकून नहीं मिलता है मुझको, बेचैनी बढ़ती जाती है।
सुलझती नहीं है उलझन मेरी, और उलझती जाती है।
साथी नहीं है कोई मेरा, मैं अकेला पथ पर हूँ।
बाहर आते ही मर जाऊंगा, लगता है मैं कोई जलचर हूँ।
ताश की छोटी पत्ती मानों, मैं नहीं तुरूप का इक्का हूँ।
खरा नहीं हूँ यारों मैं, मैं एक खोटा सिक्का हूँ।
दर-दर ठोकर खाता हूँ मैं, मुझे मिलता नहीं ठिकाना है।
काले नाग सा मुझे डसेगा, दिखता बैरी मुझे जमाना है।
सबको मुझसे उम्मीद है लेकिन, मुझको मुझसे उम्मीद नहीं।
जीवन मेरा हो गया बेसुरा, है जीवन में अब संगीत नहीं।
कभी-कभी मन कहता है, मैं छोड़ दूँ झूठी दुनियां को।
जहाँ पैसों पर बिक जाते रिश्ते, ऐसी भूखी दुनियां को।
