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Shubham Gupta

Drama

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Shubham Gupta

Drama

सावन और तुम

सावन और तुम

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है माना छोड़ कर गयी थी तुम मुझे,

बीते सावन की तरह।

लेकिन सावन आने की उम्मीद तो है...

तो भला मै क्यों हार मानूं।


सावन कहूँ या कहूँ तुम्हे सुहानी बारिश,

बेखौफी, बेपरवाही और सादगी के श्रृंगार से चमकती,

अल्हड़ सी थिरकती...

नृत्य करती नायिका से कब तुम चण्डी बनी,

और सर्वनाश कर के चली गयी ।


हल्की - हल्की बौछार सी तुम मुझ पर बरसती ,

मेरे अन्तर्मन को छूती...

सराबोर करती...

कब तुम सैलाब बनी,

और सब बहा के ले गयी !


लेकिन तुम्हारे खतों में बंद फूल

भला जिन्हें तुम धूल बना गयी,

उनकी खुशबू आज भी फ़िज़ा को महका रही है...


मंद - मंद चलती हवाएँ,

तुम्हारे पैगाम लाती,

तुम्हारे होने का एहसास कराती,

तुम्हारे इत्र को सर्वत्र फैलाती,

वो कब तूफ़ान बनीं,

और सब उड़ा कर ले गयी ...

यहाँ तक कि तुम्हारी यादों को भी...

लेकिंन तुम्हारी यादो को पकड़े

एक कमजोर शाख अभी तक कांप रही है !


सुहानी बारिश से कब तुम भयंकर बिजली बनी

और सब राख कर गयी !

मेरे सारे ख्वाबो को सुपुर्त ए खाक कर गयी !


है माना कि अब उन खतो का अस्तित्व

बस कालिख मात्र है

फिर भी उनमे लिखी दास्ताँ

आज भी मेरे अन्तर्मन में गूंजती है...!


लेकिन फिर भी बारिश की उम्मीद

और इंतज़ार तो सबको है...

तो भला मै क्यों हार मानूं !


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