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महिला दिवस

महिला दिवस

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उन्नीस सौ नौ से प्रारम्भ हुआ ,

आज एक सौ नौ साल हो गए ...

जिस उद्देश्य से प्रारम्भ हुआ ...

क्या वो पूरे हो गए ?

तो कैसी ख़ुशी, और कैसा उत्सव ?

और बोलो क्या बधाई दूँ ?

आठ बरस की बच्ची से दुराचार की ।

या हो रहे लेकिन उजागर ना हो रहे...

नित नए निर्भया हत्याकांड की ।


बताओ क्या जश्न मनाऊं ?

तिल - तिल मरती मानवता का ...

या फिर यात्रा वृतान्त लिखूँ ...

इंसानियत से हैवानियत का ।

सच कहूँ तो ये समय है ,

बधाई देने का नहीं,

प्रण लेने का ।


नारी की रक्षा का,

उसके सम्मान का ।

राजनैतिक,

सामजिक प्रगति का ।

एक बेहतर सुनहरे कल का ।


जहाँ खुलकर जियेगी हर नारी,

देश के विकास में बराबर की लेगी हिस्सेदारी ।

जब चेहरे चमकेंगे बेखौफ़ी के श्रृंगार से,

और हर आँगन गूंजेगा बच्चीयों के किलकार से ।

तब मै भी प्रफुल्लित मन से मंगल गीत गाऊंगा,

हर्षोल्लास के साथ महिला दिवस मनाऊंगा ।


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